Thursday, August 11, 2011

हम आपके हैं कौन / लो चली मैं अपने देवर की बारात ले के

रचनाकार: रविंदर रावल




लो चली मैं अपनी देवर की बारात ले के लो चली मैं
न बैण्ड बजा, न ही बाराती, खुशियों की सौगात ले के
लो चली मैं

देवर दुल्हा बना, सर पे सेहरा सजा
भाभी बढ़कर आज बलाइयाँ लेती है
प्रेम की कलियाँ खिले, पल पल खुशियाँ मिले
सच्चे मन से आज दुआएँ देती है
घोड़े पे चढ़ के, चला है बाँका, अपनी दुल्हन से मिलने
लो चली मैं

वाह! वाह! राम जी, जोड़ी क्या बनाई
देवर देवरानीजी, बधाई हो बधाई
सब रसमों से बड़ी है जग में दिल से दिल की सगाई

आज है शुभ घड़ी, आज बनी मैं बड़ी
कल तक घर की बहु थी, अब हूँ जेठानी
हुक़ुम चलाऊँगी मैं, आँख दिखाऊँगी मैं
सहमी खड़ी रहेगी मेरी देवरानी
हज़ार सपने, पलकों में अपने दीवानी मैं साथ ले के
लो चली मैं .


हम आपके हैं कौन / आज हमारे दिल में अजब ये उलझन है

रचनाकार: रविंदर रावल




आज हमारे दिल में अजब ये उलझन है
गाने बैठे गाना, सामने समधन है
हम कुछ आज सुनायें, ये उनका भी मन है
गाने बैठे गाना, सामने समधन है

कानो की बालियाँ, चाँद सूरज लगे
ये बनारस की साड़ी खूब सजे
राज़ की बात बतायें, समधीजी घायल हैं
आज भी जब समधन की, खनकती पायल है

होंठों की ये हँसी, आँखों की ये हया
इतनी मासूम तो, होती है बस दुआ
राज़ की बात बतायें समधी खुश क़िसमत है.ब
लक्ष्मी है समधन जी, जिनसे घर जन्नत है

आज हमारे दिल में अजब ये उलझन है
सामने समधीजी, गा रही समधन है
हमको जो है निभाना, वो नाज़ुक बन्धन है
सामने समधीजी, गा रही समधन है

मेरी छाया है जो, आपके घर चली
सपना बन के मेरी, पलकों में है पली
राज़ की बात बतायें, ये पूँजी जीवन की
शोभा आज से है ये, आपके आँगन की

हम आपके हैं कौन / वाह वाह राम जी

रचनाकार: रविंदर रावल




वाह वाह राम जी, जोड़ी क्या बनाई
भैय्या और भाभी को, बधाई हो बधाई
सब रसमों से बड़ी है जग में
दिल से दिल की सगाई

आपकी कृपा से ये, शुभ घड़ी आई
जीजी और जीजा को, बधाई हो बधाई
सब रसमों से बड़ी है जग में
दिल से दिल की सगाई

वाह वाह राम जी

मेरे भैय्या जो, चुप बैठे हैं
देखो भाभी ये, कैसे ऐंठे हैं
ऐसे बड़े ही भले हैं
माना थोड़े मन्चले हैं
पार आप के सिवा कहीं भी न फिसले हैं

देखो देखो ख़ुद पे, जीजी इतराई
भैय्या और भाभी को, बधाई हो बधाई
सब रसमों से बड़ी है

वाह वाह राम जी

सुनो जीजाजी, अजी आप के लिये
मेरी जीजी ने, बड़े तप हैं किये
मन्दिरों में किये फेरे
पूजा साँझ सवेरे
तीन लोक तैंतीस देवों के ये रही घेरे

जैसे मैं ने माँगी थी, वैसी भाभी पाई
जीजी और जीजा को, बधाई हो बधाई
सब रसमों से बड़ी है

वाह वाह राम जी


हम आपके हैं कौन / दीदी तेरा देवर दिवाना

रचनाकार: देव कोहली




ला ला ...
दीदी तेरा देवर दिवाना
दीदी तेरा देवर दिवाना
हाय राम कुड़ियों को डाले दाना
हाय राम कुड़ियों को डाले दाना

(धंधा है ये उसका पुराना)\- २
हाय राम कुड़ियों को डाले दाना
हाय राम कुड़ियों को डाले दाना

ल ल्ला ...

मैं बोली के लाना यू इमली का दाना
मगर वो छुहारे ले आया दिवाना
मैं बोली मचले है दिल मेरा हाय
वो खरबुजा लाया जो नीम्बू मँगाये
(पगला है कोई उसको बताना) \- २
हाय राम कुड़ियों को डाले दाना

हाय राम कुड़ियों को डाले दाना

ओय होए होए
दीदी तेरा देवर दिवाना
हाय राम कुड़ियों को डाले दाना

मैं बोली कि लाना तू मिट्टी का हाँड़ी
मगर वो बताशे ले आया अनाड़ी
मैं बोली के लादे मुझे तू खटाई
वो बाज़ार से लेके आया मिठाई
हूँ मुश्किल है यूं मुझको फँसाना \- २
हाय राम कुड़ियों को डाले दाना
हाय राम कुड़ियों को डाले दाना

उई माँ
दीदी तेरा देवर दिवाना
हाय राम कुड़ियों को डाले दाना

होए होए होए हाय रे हाय होए होए होए हाय रे हाय


भाभी तेरी बहना को माना \-२
हाय राम कुड़ियों का है ज़माना \- २

रब्बा मेरे मुझको बचाना \- २
हाय राम कुड़ियों का है ज़माना \- २

रप्पापपा तुरूरूरू रू रू \-२

हुकूम अपका था जो मैने ना माना
खतावार हूँ मैं न आया निभाना
सज़ा जो भी दोगे वो मँज़ूर होगी
अजी मेरी मुश्किल कभी दूर होगी
बन्दा है ये खुद से बेगाना \- २
हाय राम कुड़ियों का है ज़माना
हाय राम कुड़ियों का है ज़माना \- ५


हम आपके हैं कौन / जूते दे दो पैसे ले लो

रचनाकार: रविंदर रावल




दूल्हे की सालियों ओ हरे दुपट्टे वालियों \- २
जूते दे दो पैसे लेलो
को: जूते दे दो पैसे ले लो

दुल्हन के देवर तुम दिखलाओ ना ये तेवर \- २
पैसे देदो जूते लेलो
को: पैसे दे दो जूते ले लो

हे हे हे हे

अजी नोट गिनो जी, जूते लाओ
जिद छोड़ो जी, जूते लाओ
फ्रॉड हैं क्या हम, तुम ही जानो
अकड़ू हो तुम, जो भी मानो
को: जो भी मानो, जो भी मानो
अजी बात बढ़ेगी, बढ़ जाने दो
माँग चढ़ेगी, चढ़ जाने दो
पड़ो ना ऐसे, पहले जूते
को: पहले जूते पहले जूते
जूते लिये हैं नहीं चुराया कोई जेवर
दुल्हन के देवर तुम दिखलाओ ना ये तेवर
पैसे दे दो जूते ले लो
जूते दे दो पैसे ले लो \- २

कुछ ठँडा पी लो, मूड नहीं है
दही बड़े लो, मूड नहीं है
कुल्फ़ी खा लो, बहुत खा चुके
पान खा लो, बहुत खा चुके
को: बहुत खा चुके बहुत खा चुके
अजी रसमलाई, आपके लिये
इतनी मिठाई, आपके लिये
पहले जूते, खाएँगे क्या
आपकी मर्जी, नाजी तौबा
को: नाजी तौबा नाजी तौबा
किसी बेतुके शायर की बेसुरी क़व्वालियों
दूल्हे की सालियों ओ हरे दुपट्टे वालियों
जूते दे दो पैसे ले लो \- २

हे हे हे हे
जूते दे दो पैसे ले लो \- ४

कुछ कुछ होता है / साजन जी घर आये

रचनाकार: समीर


कब से आए हैं तेरे दूल्हे राजा
अब देर न कर जल्दी आजा

तेरे घर आया मैं आया तुझको लेने
दिल के बदले में दिल का नज़राना देने
मेरी हर धड़कन क्या बोले है सुन सुन सुन
साजन जी घर आए साजन जी घर आए
दुल्हन क्यूं शरमाए साजन जी घर आए

ऐ दिल चलेगा अब ना कोई बहाना
गोरी को होगा अब साजन के घर जाना
माथे की बिंदिया क्या बोले है सुन सुन सुन
साजन जी घर आए ...

दीवाने की चाल में फंस गई मैं इस जाल में
ऐ सखियों कैसे बोलो बोलो
मुझपे तो ऐ दिलरुबा तेरी सखियां भी फ़िदा
ये बोलेंगी क्या पूछो पूछो
जा रे जा झूठे तारीफ़ें क्यूं लूटे
तेरा मस्ताना क्या बोले है सुन सुन सुन
साजन जी घर आए ...

ना समझे नादान है ये मेरा एहसान है
चाहा जो इसको कह दो कह दो
छेड़ो मुझको जान के बदले में एहसान के
दे दिया दिल इसको कह दो कह दो
तू ये ना जाने दिल टूटे भी दीवाने
तेरा दीवाना क्या बोले है सुन सुन सुन
साजन जी घर आए ...

मेंहदी लाके गहने पाके
हाय रो के तू सबको रुला के
सवेरे चली जाएगी तू बड़ा याद आएगी
तू जाएगी तू बड़ा याद आएगी
तेरे घर आया ...

सच्चा झूठा / मेरी प्यारी बहनिया बनेगी दुल्हनिया

रचनाकार: इंदीवर


मेरी प्यारी बहनिया बनेगी दुल्हनिया
सजके आएँगे दूल्हे राजा
भैया राजा बजाएगा बाजा

अपने पसीने को मोती कर दूँगा
मोतियों से बहना की माँग भर दूँगा
आएगी बारात देखेगी सारी दुनिया
होंगे लाखों में एक दूल्हे राजा
भैया राजा ...

सोलह सिंगार मेरी बहिना करेगी
टीका चढ़ेगा और हलदी लगेगी
बहना के होंठों पे झूलेगी नथनिया
और झूमेंगे दूल्हे राजा
भैया राजा ...

सेज पे बैठेगी वो डोली पे चढ़ेगी
धरती पे बहना रानी पाँव न धरेगी
पलकों की पालकी में बहना को बिठा के
ले जाएँगे दूल्हे राजा
भैया राजा ...

सजना के घर चली जाएगी जो बहना
होंठ हँसेंगे मेरे रोएँगे ये नैना
रखिया के रोज़ रानी बहना को बुलाऊँगा
ले के आएँगे दूल्हे राजा
भैया राजा ...


नीलकमल / बाबुल की दुआएं लेती जा

रचनाकार: साहिर लुधियानवी


बाबुल की दुआएं लेती जा
जा तुझको सुखी संसार मिले
मैके की कभी ना याद आए
ससुराल में इतना प्यार मिले
बाबुल की दुआएं ...

नाज़ों से तुझे पाला मैंने
कलियों की तरह फूलों की तरह
बचपन में झुलाया है तुझको
बाँहों ने मेरी झूलों की तरह
मेरे बाग़ की ऐ नाज़ुक डाली
तुझे हर पल नई बहार मिले
बाबुल की दुआएं ...

जिस घर से बँधे हैं भाग तेरे
उस घर में सदा तेरा राज रहे
होंठों पे हँसी की धूप खिले
माथे पे ख़ुशी का ताज रहे
कभी जिसकी जोत न हो फीकी
तुझे ऐसा रूप-सिंगार मिले
बाबुल की दुआएं ...

बीतें तेरे जीवन की घड़ियाँ
आराम की ठंडी छाँवों में
काँटा भी न चुभने पाए कभी
मेरी लाड़ली तेरे पाँवों में
उस द्वार से भी दुख दूर रहें
जिस द्वार से तेरा द्वार मिले
बाबुल की दुआएं ...


मेरे यार की शादी है / ढोलक में ताल है पायल में छन छन

रचनाकार: जावेद अख़्तर


ढोलक में ताल है, पायल में छन छन
घूंघट में गोरी है, सेहरे में साजन
जहाँ भी ये जाएँ, बहारें ही छाएँ
ये खुशियाँ ही पाएँ, मेरे दिल ने दुआ दी है
मेरे यार की शादी है...

प्यार मिला प्रीत मिली, मेरे यार को
बड़ी प्यारी जीत मिली, मेरे यार को
खुश है जो दिल, मैंने महफ़िल, गीतों से सजा दी है
मेरे यार की शादी ...

हार नहीं जीत नहीं जहाँ प्यार है
जिसमें हार जीत हो वो कहाँ प्यार है
लग जा गले, यार मेरे, मैंने दिल से सदा दी है
मेरे यार की शादी ...

साथी, सखियां, बचपन का ये अंगना
गुड़िया, झूले, कोई भी तो होगा संग ना
छुपाऊँगी आँसू कैसे, भीगेंगे कंगना

साथी सुन ले, बोले जो ये अंगना
ये मन, जीवन, प्यार के ही, रंग में रंगना
हँस देगी तेरी चूड़ी, खनकेंगे कंगना
साथी सुन ले रे
मेरे यार की शादी ...

गुलाम बेगम बादशाह / घोड़ी पे होके सवार चला है दूल्हा यार

रचनाकार: राजिन्द्र कृष्ण


घोड़ी पे हो के सवार चला है दूल्हा यार
कमरिया में बाँधे तलवार
अकड़ता है छैला मिली है ऐसी लैला
कि जोड़ी है नहले पे दहला
घोड़ी पे हो के ...

कल तक बेचारा हम सा कँवारा
फिरता था गली-गली मारा-मारा
देखी एक छोकरी फूलों की टोकरी
बोला दिल थाम के मैं हारा-हारा
यार को मुबारक हो मुहब्बत की बाज़ी
मियाँ बीवी राज़ी तो क्या करेगा काज़ी
सदा फूले-फले दोनों का प्यार
घोड़ी पे हो के ...

दुल्हन की धुन है कैसा मगन है
होगा मिलन देखो अभी-अभी
शादी की मस्ती लगती है सस्ती
पड़ती है महँगी भी कभी-कभी
ये बात मत भूलना प्यार की बहारें
नन्हें-मुन्नों की लगा देंगी क़तारें
तब उतरेगा जा के ख़ुमार
घोड़ी पे हो के ...


जिगरवाला / चले हैं बाराती बन ठन के

रचनाकार: ??


चलें हैं बाराती बन ठन के
खुशियों से घुंघरू भी खनके
लेके जायेंगे दुल्हन, पूरा करेंगे वचन
डर डर के नहीं रे, तन तन के

अरे देखो देखो यार मेरा दूल्हा बना है
सर पे उमंगों का सेहरा बंधा है
मस्तियों का जाने कैसा जादू चला है
बिन पिए देखो नशा चढ़ने लगा है
होके घोड़ी पे सवार, बड़ा जचता है यार
सब नाचते हैं यार, बचपन के
चलें हैं बाराती बन ठन के...

बड़े ही जिगरवाले यार के बाराती
जो भी हैं कंवारे वही ढूँढ लेंगे साथी
लड़की की सारी ही सहेलियां हैं प्यारी
उन में से चुन लेना तुम बारी बारी
यही गाये शहनाई, खूब जोड़ी ये बनाई
उस रब ने गुलाब, चुन चुन के
चले हैं बाराती बन ठन के...

हम साथ साथ हैं / छोटे छोटे भाइयों

रचनाकार: देव कोहली


छोटे छोटे भाइयों के बड़े भैया, आज बनेंगे किसी के सैंया
ढोल नगाड़े बजे शहनाइयां, झूम के आईं मंगल घड़ियां
छोटे छोटे भाइयों ...

भाभी के संग होली में, रंग गुलाल उड़ाएंगे
आएगी जब जब दीवाली, मिलकर दीप जलाएंगे
चुनरी की कर देगी छैया, आएगी बन के पुरवइया
छोटे छोटे भाइयों ...

झिलमिल हो गई हैं अखियाँ, याद आईं बचपन की घड़ियां
नए सफ़र में लग जाएंगी, प्यार की इनको हथकड़ियां
जचते हैं देखो कैसे बड़े भैया, राम जी ब्याहने चले सीता मैया
छोटे छोटे भाइयों ...


हम आपके हैं कौन / बाबुल जो तुमने सिखाया

रचनाकार: रविंद्र रावल


बाबुल जो तुमने सिखाया, जो तुमसे पाया
सजन घर ले चली, सजन घर मैं चली

यादों के लेकर साये, चली घर पराये, तुम्हारी लाड़ली
कैसे भूल पाऊँगी मैं बाबा, सुनी जो तुमसे कहानियाँ
छोड़ चली आँगन में मइया, बचपन की निशानियाँ
सुन मेरी प्यारी बहना, सजाये रहना, ये बाबुल की गली
सजन घर मैं चली ...

बन गया परदेस घर जन्म का, मिली है दुनिया मुझे नयी
नाम जो पिया से मैं ने जोड़ा, नये रिश्तों से बँध गयी
मेरे ससुर जी पिता हैं, पति देवता हैं, देवर छवि कृष्ण की
सजन घर मैं चली ...

आइना / मेरी बन्नो की आएगी बारात

रचनाकार: ??


मेरी बन्नो की आएगी बारात, कि ढोल बजाओ जी
मेरी लाडो की आएगी बारात, कि ढोल बजाओ जी
आज नाचूंगी मैं सारी रात, कि ढोल बजाओ जी
मेरी बन्नो की आएगी बारात ...

सजना के घर तू जाएगी, याद हमें तेरी आएगी
जा के पिया के देस में ना, हमको भुलाना
आँख बाबुल तेरी क्यों भर आई
बेटीयाँ तो होती हैं पराई,
अब रहेगी ये सइयां जी के साथ, कि ढोल बजाओ जी,
मेरी बन्नो की आएगी बारात ...

गज़रा खिला है बालों पे, सुर्खी लगी है गालों पे
बिंदिया चमकती है माथे पे, नैनों में कज़रा
सज़ा है तन पे, गहना
लगे क्या खूब तू, बहना
खिली होठों पे, लाली
सजे कानों में, बाली
लगी मेंहदी दुल्हनिया के हाथ, कि ढोल बजाओ जी
मेरी बन्नो की आएगी बारात ...

ले लूँ बलाएं तेरी सभी, दे दूँ तुझे मैं अपनी खुशी
माँग दुआ मैं रब से यही, तू खुश रहे,
कोई चाहत रहे ना अधूरी
तेरी सारी तमन्ना हो पूरी
मैंने कहदी मेरे दिल की बात
मेरी बन्नो की आएगी बारात ..

आदमी सड़क का / आज मेरे यार की शादी है

रचनाकार: ??


अमीर से होती हैं, गरीब से होती हैं
दूर से होती हैं, क़रीब से होती हैं
मगर जहाँ भी होती हैं, ऐ मेरे दोस्त
शादियाँ तो नसीब से होती हैं

आज मेरे यार की शादी है
यार की शादी है, मेरे दिलदार की शादी है
लगता है जैसे सारे संसार की शादी है
आज मेरे यार की शादी है...

वक़्त है खूबसूरत, बड़ा शुभ लगन मुहूरत
देखो क्या खूब सजी है, दुल्हे की भोली सूरत
ख़ुशी से झूमे है मन, मिला सजनी को साजन
कैसे संजोग मिले हैं, चोली से बँध गया दामन
एक मासूम कली से मेरे गुलज़ार की शादी है
आज मेरे यार की शादी है...

ओ सुन मरे दिल जानी, तेरी भी ये जवानी
शुरु अब होने लगी है, नयी तेरी जिंदगानी
ख़ुशी से क्यों इतराए, आज तू हमें नचाये
वक़्त वो आने वाला, दुल्हनिया तुझे नचाये
किसी के सपनों के सोलह-सिंगार की शादी है
आज मेरे यार की शादी है...

सारे तारे तोड़ लाऊँ, तेरे सेहरे को सजाऊँ
फूल राहों में बिछाऊँ मैं प्यार के
आज लूँगा मै बलाएं, दूँगा दिल से दुआएं
डाल गले में ये बाँहें अब यार के
एक चमन से देखो आज बहार की शादी है

आज मेरे यार की शादी है...

मासूम / नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए

रचनाकार: शैलेन्द्र


नानी तेरी मोरनी को, मोर ले गए
बाकी जो बचा था, काले चोर ले गए

खाके पीके मोटे होके, चोर बैठे रेल में
चोरों वाला डिब्बा कट कर, पहुँचा सीधे जेल में
नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए ...

उन चोरों की खूब ख़बर ली, मोटे थानेदार ने
मोरों को भी खूब नचाया, जंगल की सरकार ने
नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए ...

अच्छी नानी प्यारी नानी, रूसा-रूसी छोड़ दे
जल्दी से एक पैसा दे दे, तू कंजूसी छोड़ दे
नानी तेरी मोरनी को, मोर ले गए ....


घराना / दादी अम्मा दादी अम्मा मान जाओ

रचनाकार: शकील बदायूनी


दादी-अम्मा दादी-अम्मा मान जाओ
छोड़ो जी ये ग़ुस्सा ज़रा हँस के दिखाओ

छोटी-छोटी बातों पे न बिगड़ा करो
ग़ुस्सा हो तो ठण्डा पानी पी लिया करो
खाली-पीली अपना कलेजा न जलाओ
दादी-अम्मा दादी-अम्मा मान जाओ...

दादी तुम्हें हम तो मना के रहेंगे
खाना अपने हाथों से खिला के रहेंगे
चाहे हमें मारो चाहे हमें धमकाओ
दादी-अम्मा दादी-अम्मा मान जाओ...

कहो तो तुम्हारी हम चम्पी कर दें
पियो तो तुम्हारे लिये हुक्का भर दें
हँसी न छुपाओ ज़रा आँखें तो मिलाओ
दादी-अम्मा दादी-अम्मा मान जाओ...

हमसे जो भूल हुई माफ़ करो माँ
गले लग जाओ दिल साफ़ करो माँ
अच्छी सी कहानी कोई हमको सुनाओ
दादी-अम्मा दादी-अम्मा मान जाओ...

लम्हे / गुड़िया रानी बिटिया रानी

रचनाकार: आनंद बख़्शी


गुड़िया रानी बिटिया रानी
परियों की नगरी से इक दिन
राजकुंवर जी आएंगे महलों में ले जाएंगे
गुड़िया रानी बिटिया रानी ...

आगे पीछे घोड़े हाथी बीच में होंगे सौ बाराती
कितनी आज अकेली है तू तेरे कितने होंगे साथी
मैं खुश मेरी आँख में पानी
गुड़िया रानी बिटिया रानी ...

तू मेरी छोटी सी गुड़िया बन जाएगी जादू की पुड़िया
तुझपे आ जाएगी जवानी मैं तो हो जाऊँगी बुढ़िया
भूल ना जाना प्रीत पुरानी
गुड़िया रानी बिटिया रानी ...


दोस्ती / गुड़िया हमसे रूठी रहोगी

रचनाकार: मजरूह सुल्तानपुरी


गुड़िया, हमसे रूठी रहोगी
कब तक, न हँसोगी
देखो जी, किरन सी लहराई
आई रे आई रे हँसी आई
गुड़िया ...

झुकी-झुकी पलकों में आ के
देखो गुपचुप आँखों से झाँके
तुम्हारी हँसी
फिर भी, अँखियाँ बन्द करोगी
गुड़िया ...

अभी-अभी आँखों से छलके
कुछ-कुछ होंठों पे झलके
तुम्हारी हँसी
फिर भी, मुख पे हाथ धरोगी
गुड़िया ...

मि. नटवरलाल / मेरे पास आओ मेरे दोस्तो

रचनाकार: आन्नद बख़्शी


आओ बच्चो आज तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ मैं
शेर की कहानी सुनोगे

मेरे पास आओ मेरे दोस्तो एक क़िस्सा सुनो
कई साल पहले की ये बात है
भयानक अंधेरी सियाह रात में
लिये अपनी बन्दूक मैं हाथ में
घने जंगलों से गुज़रता हुआ कहीं जा रहा था
जा रहा था, नहीं आ रहा था, नहीं जा रहा था

ओफ़ ओ आगे भी तो बोलो ना

बताता हूँ बताता हूँ

नहीं भूलती उफ्फ़ वो जंगल की रात
मुझे याद है वो थी मंगल की रात
चला जा रहा था मैं डरता हुआ
हनुमान चालीसा पढ़ता हुआ

बोलो हनुमान की जय
जय बजरंग बली की जय

घड़ी थी अन्धेरा मगर सख़्त था
कोई दस सवा दस का बस वक़्त था
लरज़ता था कोयल की भी कूक से
बुरा हाल हुआ उस पे भूख से
लगा तोड़ने एक बेरी से बेर
मेरे सामने आ गया एक शेर

जो घिघ्घी बँधी नज़र फिर गई
तो बन्दूक भी हाथ से गिर गई

मैं लपका वो झपका, मैं ऊपर वो नीचे
वो आगे मैं पीछे, मैं पेड़ पे वो पीछे
अरे बचाओ -२
मैं डाल-डाल वो पात-पात
मैं पसीना वो बाग़-बाग़
मैं सुर में वो ताल में
ये जंगल पाताल में
बचाओ बचाओ
अरे भागो रे भागो
अरे भागो

फिर क्या हुआ?

ख़ुदा की क़सम मज़ा आ गया
मुझे मार कर बेसरम खा गया

खा गया? लेकिन आप तो ज़िन्दा हैं

अरे ये जीना भी कोई जीना है लल्लू


दर्द का रिश्ता / कौन हूँ मैं क्या नाम है मेरा

रचनाकार: हसरत जयपुरी


क्या नाम है तुम्हारा
तुम किधर से आई हो, बोलो ना, बोलो बोलो

कौन हूँ मैं, क्या नाम है मेरा, मैं कहाँ से आई हूँ
मैं परीयों की शहज़ादी, मैं आसमान से आई हूँ ...

न जापानी गुड़िया हूँ न मैं बंगाल का जादू हूँ
ढूँढ रहे हो सब जिसको मैं वही तुम्हारी खुश्बु हूँ
उड़कर सीधी मैं जन्नत के गुल्सितां से आई हूँ
मैं परियों की शहजादी ...

ख़ान चाचा और चौबे दादा आपस मे क्युँ लड़ते हो
मैंने उनको देखा है तुम जिनकी किताबें पढ़ते हो
राम रहीम वहीं रहते हैं मैं जहाँ से आई हूँ
मैं परियों की शहजादी ...

इक दिन मैंने देखा सोते स्वर्ग के पेहरेदारों को
तोता मैना वाली कहानी होगी याद हज़ारों को
मैं उस तोता मैना वाली दास्तां से आई हूँ
मैं परियों की शहजादी ...


अंदाज़ / रे मामा रे मामा रे

रचनाकार: हसरत जयपुरी


सुन लो सुनाता हूँ तुमको कहानी
रूठो ना हमसे ओ गुड़ियों की रानी
रे मामा रे मामा रे...

हम तो गए बाज़ार में लेने को आलू
आलू वालू कुछ न मिला पीछे पड़ा भालू
रे मामा रे मामा रे...

हम तो गए बाज़ार में लेने को लट्टू
लट्टू वट्टू कुछ न मिला पीछे पड़ा टट्टू
रे मामा रे मामा रे...

हम तो गए बाज़ार में लेने को रोटी
रोटी वोटी कुछ न मिली पीछे पड़ी मोटी
रे मामा रे मामा रे...


मासूम / लकड़ी की काठी

रचनाकार: गुलज़ार


लकड़ी की काठी, काठी पे घोड़ा
घोड़े की दुम पे जो मारा हथौड़ा
दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा

घोड़ा पहुँचा चौक में, चौक में था नाई
घोड़ेजी की नाई ने हजामत जो बनाई
दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
लकड़ी की काठी...

घोड़ा था घमण्डी पहुँचा सब्जी मण्डी
सब्जी मण्डी बरफ पड़ी थी बरफ में लग गई ठंडी
दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
लकड़ी की काठी...

घोड़ा अपना तगड़ा है देखो कितनी चरबी है
चलता है महरौली में पर घोड़ा अपना अरबी है
बांह छुड़ा के दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
लकड़ी की काठी...


कभी कभी / मेरे घर आई एक नन्ही परी

रचनाकार: साहिर लुधियानवी


मेरे घर आई एक नन्ही परी
चाँदनी के हसीन रथ पे सवार
मेरे घर आई..

उसकी बातों में शहद जैसी मिठास
उसकी सासों में इतर की महकास
होंठ जैसे के भीगे-भीगे गुलाब
गाल जैसे के बहके-बहके अनार
मेरे घर आई ...

उसके आने से मेरे आंगन में
खिल उठे फूल गुनगुनायी बहार
देख कर उसको जी नहीं भरता
चाहे देखूँ उसे हज़ारों बार
मेरे घर आई ...

मैने पूछा उसे कि कौन है तू
हँसके बोली कि मैं हूँ तेरा प्यार
मैं तेरे दिल में थी हमेशा से
घर में आई हूँ आज पहली बार
मेरे घर आई ...


दूर की आवाज़ / हम भी अगर बच्चे होते

रचनाकार: शकील बदायूनी


Happy birthday to you
Happy birthday to you

हम भी अगर बच्चे होते
नाम हमारा होता गबलू बबलू
खाने को मिलते लड्डू
और दुनिया कहती happy birthday to you
happy birthday to you

कोई लाता गुड़िया, मोटर, रेल
तो कोई लाता फिरकी, लट्टू
कोई चाबी का टट्टू
और दुनिया कहती happy birthday to you
happy birthday to you

कितनी प्यारी होती है ये भोली सी उमर
न नौकरी की चिन्ता न रोटी की फ़िक्र
नन्हे-मुन्ने होते हम तो देते सौ हुक्म
पीछे-पीछे पापा-ममी बनके नौकर
चाकलेट , बिस्कुट , टोफ्फी खाते और पीते दुद्दू
और दुनिया कहती happy birthday to you
happy birthday to you

कैसे-कैसे नख़रे करते घरवालों से हम
पल में हँसते पल में रोते करते नाक में दम
अक्कड़-बक्कड़ लुक्का-छुपी कभी छुआ-छू
करते दिन भर हल्ला-गुल्ला दंगा और उधम
और कभी ज़िद पर अड़ जाते जैसे अड़ियल टट्टू
और दुनिया कहती happy birthday to you
happy birthday to you

अब तो है ये हाल के जब से बीता बचपन
माँ से झगड़ा बाप से टक्कर बीवी से अनबन
कोल्हू के हम बैल बने हैं धोबी के गधे
दुनिया भर के डण्डे सर पे खायें दना-दन
बचपन अपना होता तो न करते ढेँचू-ढेँचू
और दुनिया कहती happy birthday to you
happy birthday to you


Wednesday, August 10, 2011

हम हिन्दुस्तानी / छोड़ो कल की बातें

रचनाकार: प्रेम धवन


छोड़ो कल की बातें कल की बात पुरानी
नये दौर में लिखेंगे मिलकर नई कहानी
हम हिन्दुस्तानी, हम हिन्दुस्तानी ...

आज पुरानी ज़ंजीरों को तोड़ चुके हैं
क्या देखें उस मंजिल को जो छोड़ चुके हैं
चाँद के दर पे जा पहुंचा है आज ज़माना
नये जगत से हम भी नाता जोड़ चुके हैं
नया खून है, नयी उमंगें, अब है नयी जवानी
हम हिन्दुस्तानी, हम हिन्दुस्तानी ...

हमको कितने ताजमहल हैं और बनाने
कितने हैं अजंता हम को और सजाने
अभी पलटना है रुख कितने दरियाओं का
कितने पवर्त राहों से हैं आज हटाने
नया खून है, नयी उमंगें, अब है नयी जवानी
हम हिन्दुस्तानी, हम हिन्दुस्तानी ...

आओ मेहनत को अपना ईमान बनाएं
अपने हाथों को अपना भगवान बनाएं
राम की इस धरती को गौतम की भूमी को
सपनों से भी प्यारा हिंदुस्तान बनाएं
नया खून है, नयी उमंगें, अब है नयी जवानी
हम हिन्दुस्तानी, हम हिन्दुस्तानी ...

हर ज़र्रा है मोती आँख उठाकर देखो
माटी में सोना है हाथ बढ़ाकर देखो
सोने की ये गंगा है चांदी की यमुना
चाहो तो पत्थर पे धान उगाकर देखो
नया खून है, नयी उमंगें, अब है नयी जवानी
हम हिन्दुस्तानी, हम हिन्दुस्तानी ...


हमराही / बढ़ते चलो, बढ़ते चलो, बढ़ते चलो जवानो

रचनाकार: मुंशी जाकिर् हुसैन्


बढ़ते चलो, बढ़ते चलो, बढ़ते चलो जवानो।
ऎ देश के सपूतो! मज़दूर और किसानो।।

है रास्ता भी रौशन और सामने है मंज़िल।
हिम्मत से काम लो तुम आसान होगी मुश्किल।।
कर के उसे दिखा दो, जो अपने दिल में ठानो।
बढ़ते चलो, बढ़ते चलो, बढ़ते चलो जवानो।।

भूखे महाजनों ने, ले रखे हैं इजारे।
जिनके सितम से लाखों फिरते हैं मारे-मारे।।
हैं देश के ये दुश्मन! इनको न दोस्त जानो।
बढ़ते चलो, बढ़ते चलो, बढ़ते चलो जवानो।।



हमराही / बढ़ते चलो, बढ़ते चलो, बढ़ते चलो जवानो

रचनाकार: मुंशी जाकिर् हुसैन्


बढ़ते चलो, बढ़ते चलो, बढ़ते चलो जवानो।
ऎ देश के सपूतो! मज़दूर और किसानो।।

है रास्ता भी रौशन और सामने है मंज़िल।
हिम्मत से काम लो तुम आसान होगी मुश्किल।।
कर के उसे दिखा दो, जो अपने दिल में ठानो।
बढ़ते चलो, बढ़ते चलो, बढ़ते चलो जवानो।।

भूखे महाजनों ने, ले रखे हैं इजारे।
जिनके सितम से लाखों फिरते हैं मारे-मारे।।
हैं देश के ये दुश्मन! इनको न दोस्त जानो।
बढ़ते चलो, बढ़ते चलो, बढ़ते चलो जवानो।।



हकीकत / अब तुम्हारे हवाले है वतन साथियों

रचनाकार: कैफी आज़मी


कर चले हम फ़िदा, जान-ओ-तन साथीयों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथीयों ...

सांस थमती गई, नब्ज जमती गई,
फिर भी बढ़ते कदम को ना रुकने दिया
कट गये सर हमारे तो कुछ ग़म नहीं
सर हिमालय का हमने न झुकने दिया
मरते मरते रहा बाँकपन साथीयों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथीयों ...

जिन्दा रहने के मौसम बहुत हैं मगर
जान देने की रुत रोज आती नहीं
हुस्न और इश्क दोनो को रुसवा करे
वो जवानी जो खूँ में नहाती नहीं
बाँध लो अपने सर पर कफ़न साथीयों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथीयों ...

राह कुर्बानियों की ना वीरान हो
तुम सजाते ही रहना नये काफ़िले
फ़तह का जश्न इस जश्न के बाद है
जिन्दगी मौत से मिल रही है गले
आज धरती बनी है दुल्हन साथीयों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथीयों ...

खेंच दो अपने खूँ से जमीं पर लकीर
इस तरफ आने पाये ना रावण कोई
तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे
छूने पाये ना सीता का दामन कोई
राम भी तुम तुम्हीं लक्ष्मण साथीयों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथीयों ...

सिकंदर ऐ आज़म / जहाँ डाल डाल पर सोने

रचनाकार: राजिन्दर कृष्ण संगीतकार=हंस राज बहल



गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु
गुरुदेव महेश्वरा
गुरु साक्षात परब्रह्म
तत्समये श्री गुरुवे नम:

जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़ियाँ करती है बसेरा
वो भारत देश है मेरा।

जहाँ सत्य अहिंसा और धर्म का पग-पग लगता डेरा
वो भारत देश है मेरा।

ये धरती वो जहाँ ॠषि मुनि जपते प्रभु नाम की माला
जहाँ हर बालक एक मोहन है और राधा हर एक बाला
जहाँ सूरज सबसे पहले आ कर डाले अपना फेरा
वो भारत देश है मेरा।

अलबेलों की इस धरती के त्योहार भी हैं अलबेले
कहीं दीवाली की जगमग है कहीं हैं होली के मेले
जहाँ राग रंग और हँसी खुशी का चारों ओर है घेरा
वो भारत देश है मेरा।

जहाँ आसमान से बातें करते मंदिर और शिवाले
जहाँ किसी नगर में किसी द्वार पर कोई न ताला डाले
प्रेम की बंसी जहाँ बजाता है ये शाम सवेरा
वो भारत देश है मेरा।


सन ऑफ़ इंडिया / नन्हा मुन्ना राही हूँ

रचनाकार: शकील बदायूनी


नन्हा मुन्ना राही हूँ, देश का सिपाही हूँ
बोलो मेरे संग, जय हिन्द, जय हिन्द, जय हिन्द

रस्ते पे चलूंगा न डर-डर के
चाहे मुझे जीना पड़े मर-मर के
मंज़िल से पहले ना लूंगा कहीं दम
आगे ही आगे बढाऊँगा कदम
दाहिने बाएं दाहिने बाएं, थम!
नन्हा मुन्ना राही हूँ...

धूप में पसीना बहाऊँगा जहाँ
हरे-भरे खेत लहराएगें वहाँ
धरती पे फाके न पाएगें जन्म
आगे ही आगे ...

नया है ज़माना मेरी नई है डगर
देश को बनाऊँगा मशीनों का नगर
भारत किसी से न रहेगा कम
आगे ही आगे ...

बड़ा हो के देश का सितारा बनूंगा
दुनिया की आँखो का तारा बनूंगा
रखूँगा ऊँचा तिरंगा हरदम
आगे ही आगे ...

शांति की नगरी है मेरा ये वतन
सबको सिखाऊँगा प्यार का चलन
दुनिया मे गिरने न दूँगा कहीं बम
आगे ही आगे ...

शहीद भगत सिंह / सरफरोशी की तमन्ना

रचनाकार: बिस्मिल अज़ीमाबादी


सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है ।

करता नहीं क्यों दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफिल मैं है ।

यों खड़ा मक़्तल में कातिल कह रहा है बार-बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है ।

ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफिल में है ।

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है ।

खींच कर लाई है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूचा-ऐ-कातिल में है ।

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है ।

शहीद / मेरा रंग दे बसंती चोला

रचनाकार: प्रेम धवन


मेरा रंग दे बसंती चोला, माए रंग दे
मेरा रंग दे बसंती चोला

दम निकले इस देश की खातिर बस इतना अरमान है
एक बार इस राह में मरना सौ जन्मों के समान है
देख के वीरों की क़ुरबानी अपना दिल भी बोला
मेरा रंग दे बसंती चोला ...

जिस चोले को पहन शिवाजी खेले अपनी जान पे
जिसे पहन झाँसी की रानी मिट गई अपनी आन पे
आज उसी को पहन के निकला हम मस्तों का टोला
मेरा रंग दे बसंती चोला ...



शहीद / ऐ वतन ऐ वतन

रचनाकार: प्रेम धवन


तू ना रोना, कि तू है भगत सिंह की माँ
मर के भी लाल तेरा मरेगा नहीं
डोली चढ़के तो लाते है दुल्हन सभी
हँसके हर कोई फाँसी चढ़ेगा नहीं

जलते भी गये कहते भी गये
आज़ादी के परवाने
जीना तो उसी का जीना है
जो मरना देश पर जाने

जब शहीदों की डोली उठे धूम से
देशवालों तुम आँसू बहाना नहीं
पर मनाओ जब आज़ाद भारत का दिन
उस घड़ी तुम हमें भूल जाना नहीं

ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी क़सम
तेरी राहों में जां तक लुटा जायेंगे
फूल क्या चीज़ है तेरे कदमों पे हम
भेंट अपने सरों की चढ़ा जायेंगे
ऐ वतन ऐ वतन

कोई पंजाब से, कोई महाराष्ट्र से
कोई यूपी से है, कोई बंगाल से
तेरी पूजा की थाली में लाये हैं हम
फूल हर रंग के, आज हर डाल से
नाम कुछ भी सही पर लगन एक है
जोत से जोत दिल की जगा जायेंगे
ऐ वतन ऐ वतन ...

तेरी जानिब उठी जो कहर की नज़र
उस नज़र को झुका के ही दम लेंगे हम
तेरी धरती पे है जो कदम ग़ैर का
उस कदम का निशां तक मिटा देंगे हम
जो भी दीवार आयेगी अब सामने
ठोकरों से उसे हम गिरा जायेंगे

लीडर / अपनी आजादी को हम हर्गिज़ मिटा सकते नही

रचनाकार: शकील बदायूनी


अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं
सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं

हमने सदियों में ये आज़ादी की नेमत पाई है
सैंकड़ों कुर्बानियाँ देकर ये दौलत पाई है
मुस्कुरा कर खाई हैं सीनों पे अपने गोलियां
कितने वीरानो से गुज़रे हैं तो जन्नत पाई है
ख़ाक में हम अपनी इज्ज़़त को मिला सकते नहीं
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं...

क्या चलेगी ज़ुल्म की अहले-वफ़ा के सामने
आ नहीं सकता कोई शोला हवा के सामने
लाख फ़ौजें ले के आए अमन का दुश्मन कोई
रुक नहीं सकता हमारी एकता के सामने
हम वो पत्थर हैं जिसे दुश्मन हिला सकते नहीं
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं...

वक़्त की आवाज़ के हम साथ चलते जाएंगे
हर क़दम पर ज़िन्दगी का रुख बदलते जाएंगे
’गर वतन में भी मिलेगा कोई गद्दारे वतन
अपनी ताकत से हम उसका सर कुचलते जाएंगे
एक धोखा खा चुके हैं और खा सकते नहीं
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं...

हम वतन के नौजवाँ है हम से जो टकरायेगा
वो हमारी ठोकरों से ख़ाक में मिल जायेगा
वक़्त के तूफ़ान में बह जाएंगे ज़ुल्मो-सितम
आसमां पर ये तिरंगा उम्र भर लहरायेगा
जो सबक बापू ने सिखलाया भुला सकते नहीं
सर कटा सकते है लेकिन सर झुका सकते नहीं...



रोजा / भारत हमको जान से प्यारा है

रचनाकार: पि.के. मिश्रा


भारत हमको जान से प्यारा है
सबसे न्यारा गुलिस्तां हमारा है

सदियों से भारत भूमि, दुनिया कि शान है
भारत माँ कि रक्षा में, जीवन कुर्बान है
भारत हमको जान से प्यारा है ...

उजड़े नही अपना चमन, टूटे नहीं अपना वतन
गुमराह न कर दे कोई, बर्बाद न कर दे कोई
मन्दिर यहाँ मस्जिद यहाँ, हिन्दु यहाँ मुस्लिम यहाँ
मिलते रहे हम प्यार से, जागो ...

हिन्दुस्तानी नाम हमारा है, सबसे प्यारा देश हमारा है
जन्मभूमि है हमारी, शान से कहेंगे हम
सब ही तो भाई भाई, प्यार से रहेंगे हम
हिन्दुस्तानी नाम हमारा है, भारत हमको जान से प्यारा है

आसाम से गुजरात तक, बंगाल से महाराष्ट्र तक
जाती कई धुन एक है, भाषा कई सुर एक है
कश्मीर से मद्रास तक, कह दो सभी हम एक हैं
आवाज दो हम एक हैं, जागो ...



बॉर्डर / मेरे दुश्मन मेरे भाई

रचनाकार: जावेद अख़्तर


जंग तो चंद रोज होती है , जिन्दगी बरसों तलक रोती है

बारूद से बोझल सारी फिज़ा, है मोत की बू फैलाती हवा
जख्मों पे है छाई लाचारी, गलियों में है फिरती बीमारी
ये मरते बच्चे हाथों में, ये माओं का रोना रातों में
मुर्दा बस्ती मुर्दा है नगर, चेहरे पत्थर हैं दिल पत्थर
मेरे दुश्मन, मेरे भाई, मेरे हमसाये
मुझे से तुझ से, हम दोनों से, सुन ये पत्थर कुछ कहते हैं
बर्बादी के सारे मंजर कुछ कहते हैं
मेरे दुश्मन, मेरे भाई, मेरे हमसाये

सन्नाटे की गहरी छाँव, ख़ामोशी से जलते गाँव
ये नदियों पर टूटे हुए पुल, धरती घायल और व्याकुल
ये खेत ग़मों से झुलसे हुए, ये खाली रस्ते सहमे हुए
ये मातम करता सारा समां, ये जलते घर ये काला धुआं
मेरे दुश्मन, मेरे भाई, मेरे हमसाये
मुझे से तुझ से, हम दोनों से ये जलते घर कुछ कहते हैं
बर्बादी के सारे मंजर कुछ कहते हैं
मेरे दुश्मन, मेरे भाई, मेरे हमसाए

मेरे दुश्मन, मेरे भाई, मेरे हमसाये
चेहरों के, दिलों के ये पत्थर, ये जलते घर
बर्बादी के सारे मंजर, सब तेरे नगर सब मेरे नगर, ये कहते हैं
इस सरहद पर फुन्कारेगा कब तक नफरत का ये अजगर
हम अपने अपने खेतो में, गेहूँ की जगह चावल की जगह
ये बन्दूके क्यों बोते हैं
जब दोनों ही की गलियों में, कुछ भूखे बच्चे रोते हैं
आ खाएं कसम अब जंग नहीं होने पाए
ओर उस दिन का रस्ता देंखें,
जब खिल उठे तेरा भी चमन, जब खिल उठे मेरा भी चमन
तेरा भी वतन मेरा भी वतन, मेरा भी वतन तेरा भी वतन
मेरे दोस्त, मेरे भाई, मेरे हमसाये

बूट पॉलिश / नन्हें मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी मैं क्या है

नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है
मुट्ठी में है तकदीर हमारी
मुट्ठी में है तकदीर हमारी
हमने किस्मत को बस में किया है

भोली भाली मतवाली आँखों में क्या है
आँखों में झूमे उम्मीदों की दिवाली
आँखों में झूमे उम्मीदों की दिवाली
आने वाली दुनिया का सपना सजा है

नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है

भीख में जो मोती मिलेगा लोगे या न लोगे
ज़िन्दगी के आंसुओं का बोलो क्या करोगे

भीख में जो मोती मिले तो भी हम न लेंगे
ज़िन्दगी के आंसुओं की माला पहनेंगे
मुश्किलों से लड़ते फिरते जीने में मज़ा है

नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है ..

हमसे न छुपाओ बच्चो हमें तो बताओ
आने वाली दुनिया कैसी होगी समझाओ

आने वाली दुनिया में सब के सर पे ताज हो
न भूखों की भीड़ होगी
न दुखों का राज हो
बदलेगा ज़माना यह सितारों पे लिखा है

नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है ...


पूरब और पश्चिम / है प्रीत जहाँ की रीत सदा

रचनाकार: इंदीवर


जब ज़ीरो दिया मेरे भारत ने, दुनिया को तब गिनती आई
तारों की भाषा भारत ने, दुनिया को पहले सिखलाई

देता ना दशमलव भारत तो, यूँ चाँद पे जाना मुश्किल था
धरती और चाँद की दूरी का, अंदाज़ लगाना मुश्किल था

सभ्यता जहाँ पहले आई, पहले जनमी है जहाँ पे कला
अपना भारत वो भारत है, जिसके पीछे संसार चला
संसार चला और आगे बढ़ा, ज्यूँ आगे बढ़ा, बढ़ता ही गया
भगवान करे ये और बढ़े, बढ़ता ही रहे और फूले-फले

है प्रीत जहाँ की रीत सदा, मैं गीत वहाँ के गाता हूँ
भारत का रहने वाला हूँ, भारत की बात सुनाता हूँ

काले-गोरे का भेद नहीं, हर दिल से हमारा नाता है
कुछ और न आता हो हमको, हमें प्यार निभाना आता है
जिसे मान चुकी सारी दुनिया, मैं बात वही दोहराता हूँ
भारत का रहने वाला हूँ, भारत की बात सुनाता हूँ

जीते हो किसीने देश तो क्या, हमने तो दिलों को जीता है
जहाँ राम अभी तक है नर में, नारी में अभी तक सीता है
इतने पावन हैं लोग जहाँ, मैं नित-नित शीश झुकाता हूँ
भारत का रहने वाला हूँ, भारत की बात सुनाता हूँ

इतनी ममता नदियों को भी, जहाँ माता कहके बुलाते है
इतना आदर इन्सान तो क्या, पत्थर भी पूजे जातें है
उस धरती पे मैंने जन्म लिया, ये सोच के मैं इतराता हूँ
भारत का रहने वाला हूँ, भारत की बात सुनाता हूँ

नया दौर / यह देश है वीर जवानों का

रचनाकार: साहिर लुधियानवी


ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का
इस देश का यारों क्या कहना, ये देश है दुनिया का गहना

यहाँ चौड़ी छाती वीरों की, यहाँ भोली शक्लें हीरों की
यहाँ गाते हैं राँझे मस्ती में, मचती में धूमें बस्ती में

पेड़ों में बहारें झूलों की, राहों में कतारें फूलों की
यहाँ हँसता है सावन बालों में, खिलती हैं कलियाँ गालों में

कहीं दंगल शोख जवानों के, कहीं करतब तीर कमानों के
यहाँ नित नित मेले सजते हैं, नित ढोल और ताशे बजते हैं

दिलबर के लिये दिलदार हैं हम, दुश्मन के लिये तलवार हैं हम
मैदां में अगर हम डट जाएं, मुश्किल है कि पीछे हट जाएं


जिस देश में गंगा बहती है / जिस देश में गंगा बहती

रचनाकार: शैलेन्द्र


होठों पे सच्चाई रहती है, जहाँ दिल में सफ़ाई रहती है
हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं
जिस देश में गंगा बहती है

मेहमां जो हमारा होता है, वो जान से प्यारा होता है
ज़्यादा की नहीं लालच हमको, थोड़े मे गुज़ारा होता है
बच्चों के लिये जो धरती माँ, सदियों से सभी कुछ सहती है
हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं
जिस देश में गंगा बहती है

कुछ लोग जो ज़्यादा जानते हैं, इन्सान को कम पहचानते हैं
ये पूरब है पूरबवाले, हर जान की कीमत जानते हैं
मिल जुल के रहो और प्यार करो, एक चीज़ यही जो रहती है
हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं
जिस देश में गंगा बहती है

जो जिससे मिला सिखा हमने, गैरों को भी अपनाया हमने
मतलब के लिये अन्धे होकर, रोटी को नही पूजा हमने
अब हम तो क्या सारी दुनिया, सारी दुनिया से कहती है
हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं
जिस देश में गंगा बहती है


जागृति / हम लाये हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के

रचनाकार: प्रदीप

संगीतकार : हेमंत

गायक : रफी


पासे सभी उलट गए दुश्मन की चाल के
अक्षर सभी पलट गए भारत के भाल के
मंजिल पे आया मुल्क हर बला को टाल के
सदियों के बाद फिर उड़े बादल गुलाल के

हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के
तुम ही भविष्य हो मेरे भारत विशाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के ...

देखो कहीं बरबाद न होवे ये बगीचा
इसको हृदय के खून से बापू ने है सींचा
रक्खा है ये चिराग शहीदों ने बाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के
हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के...

दुनिया के दांव पेंच से रखना न वास्ता
मंजिल तुम्हारी दूर है लंबा है रास्ता
भटका न दे कोई तुम्हें धोके मे डाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के
हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के...

एटम बमों के जोर पे ऐंठी है ये दुनिया
बारूद के इक ढेर पे बैठी है ये दुनिया
तुम हर कदम उठाना जरा देखभाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के
हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के...

आराम की तुम भूल भुलय्या में न भूलो
सपनों के हिंडोलों मे मगन हो के न झुलो
अब वक़्त आ गया मेरे हंसते हुए फूलो
उठो छलांग मार के आकाश को छू लो
तुम गाड़ दो गगन में तिरंगा उछाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के
हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के...


जागृति / दे दी हमे आजादी बिना

रचनाकार: पंडित प्रदीप शर्मा


दे दी हमें आज़ादी बिना खड्‌ग बिना ढाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
आंधी में भी जलती रही गांधी तेरी मशाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल

धरती पे लड़ी तूने अजब ढंग की लड़ाई
दागी न कहीं तोप न बंदूक चलाई
दुश्मन के किले पर भी न की तूने चढ़ाई
वाह रे फकीर खूब करामात दिखाई
चुटकी में दुश्मनों को दिया देश से निकाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
रघुपति राघव राजा राम

शतरंज बिछा कर यहाँ बैठा था ज़माना
लगता था कि मुश्किल है फिरंगी को हराना
टक्कर थी बड़े ज़ोर की दुश्मन भी था दाना
पर तू भी था बापू बड़ा उस्ताद पुराना
मारा वो कस के दांव कि उल्टी सभी की चाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
रघुपति राघव राजा राम

जब जब तेरा बिगुल बजा जवान चल पड़े
मजदूर चल पड़े थे और किसान चल पड़े
हिन्दू मुसलमान सिख पठान चल पड़े
कदमों पे तेरे कोटि कोटि प्राण चल पड़े
फूलों की सेज छोड़ के दौड़े जवाहरलाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
रघुपति राघव राजा राम

मन में थी अहिंसा की लगन तन पे लंगोटी
लाखों में घूमता था लिये सत्य की सोंटी
वैसे तो देखने में थी हस्ती तेरी छोटी
लेकिन तुझे झुकती थी हिमालय की भी चोटी
दुनिया में तू बेजोड़ था इंसान बेमिसाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
रघुपति राघव राजा राम

जग में कोई जिया है तो बापू तू ही जिया
तूने वतन की राह में सबकुछ लुटा दिया
मांगा न कोई तख्त न तो ताज ही लिया
अमृत दिया सभी को मगर खुद ज़हर पिया
जिस दिन तेरी चिता जली रोया था महाकाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
रघुपति राघव राजा राम


गंगा जमुना / इन्साफ की डगर पर

रचनाकार: शकील बदायूनी


इन्साफ की डगर पे, बच्चों दिखाओ चल के
ये देश है तुम्हारा, नेता तुम्ही हो कल के

दुनिया के रंज सहना और, कुछ ना मुँह से कहना
सच्चाईयों के बल पे, आगे को बढ़ते रहना
रख दोगे एक दिन तुम, संसार को बदल के
इन्साफ की डगर पे...

अपने हों या पराए, सब के लिए हो न्याय
देखो कदम तुम्हारा, हरगिज़ ना डगमगाए
रस्ते बड़े कठिन हैं, चलना संभल-संभल के
इन्साफ की डगर पे...

इन्सानियत के सर पे, इज़्ज़त का ताज रखना
तन मन की भेंट देकर, भारत की लाज रखना
जीवन नया मिलेगा, अंतिम चिता में जल के
इन्साफ की डगर पे...


काबुलीवाला / ऐ मेरे प्यारे वतन

रचनाकार: गुलजार


ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन
तुझपे दिल कुर्बान, तू ही मेरी आरज़ू
तू ही मेरी आबरू, तू ही मेरी जान

माँ का दिल बन के कभी सीने से लग जाता है तू
और कभी नन्हीं सी बेटी बन के याद आता है तू
जितना याद आता है मुझको, उतना तड़पाता है तू
तुझपे दिल कुर्बान...

तेरे दामन से जो आए उन हवाओं को सलाम
चूम लूँ मैं उस ज़ुबां को जिसपे आए तेरा नाम
सबसे प्यारी सुबह तेरी, सबसे रंगीं तेरी शाम
तुझपे दिल कुर्बान...

छोड़ कर तेरी गली को दूर आ पहुंचे हैं हम
है मगर ये ही तमन्ना तेरे ज़र्रों की कसम
जिस जगह पैदा हुए थे, उस जगह ही निकले दम
तुझपे दिल कुर्बान...


करमा / हर करम अपना करेंगे

रचनाकार: अनन्द बक्षी


ऐ मुहब्बत -२

ऐ मुहब्बत तेरी दास्तां के लिए
मैं हूँ तैयार हर इम्तिहां के लिए
जान बुलबुल की है गुलिस्तां के लिए
ऐ मुहब्बत तेरी दास्तां के...

इक शोला हूँ मैं इक बिजली हूँ मैं
आग रखकर हथेली पे निकली हूँ मैं
दुश्मनों के हर एक आशियाँ के लिए
जान बुलबुल की है ...

ये ज़माना अभी मुझको जाना नहीं
सिर कटाना है पर सिर झुकाना नहीं
मुझको मरना है अपने हिन्दुस्तां के लिए
जान बुलबुल की है ...

हर करम अपना करेंगे -२ ऐ वतन तेरे लिए
दिल दिया है जां भी देंगे ऐ वतन तेरे लिए

मेरा कर्मा तू मेरा धर्मा तू
तेरा सब कुछ मैं मेरा सब कुछ तू
हर करम अपना करेंगे ऐ वतन तेरे लिए
दिल दिया है जां भी देंगे ऐ वतन तेरे लिए

और कोई भी कसम कोई भी वादा कुछ नहीं
एक बस तेरी मोहब्बत से ज्यादा कुछ नहीं कुछ नहीं
हम जियेंगे और मरेंगे ऐ सनम तेरे लिए

सबसे पहले तू है तेरे बाद हर एक नाम है
तू मेरा आग़ाज़ था तू ही मेरा अन्जाम है अन्जाम है
हम जिऐंगे और मरेंगे ऐ सनम तेरे लिए
दिल दिया है जां भी ...

मेरा कर्मा तू मेरा धर्मा तू
तेरा सब कुछ मैं मेरा सब कुछ तू

हर करम अपना करेंगे -२ ऐ वतन तेरे लिए
दिल दिया है जां भी देंगे ऐ वतन तेरे लिए

तू मेरा कर्मा तू मेरा धर्मा तू मेरा अभिमान है
ऐ वतन महबूब मेरे तुझपे दिल क़ुर्बान है
हम जिऐंगे या मरेंगे ऐ वतन तेरे लिए
दिल दिया है जां भी देंगे ...

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई हमवतन हमनाम हैं
जो करे इनको जुदा मज़हब नहीं इल्जाम है
हम जिऐंगे या मरेंगे ...

तेरी गलियों में चलाकर नफ़रतों की गोलियां
लूटते हैं सब लुटेरे दुल्हनों की डोलियां
लुट रहा है आंप वो अपने घरों को लूट कर
खेलते हैं बेखबर अपने लहू से होलीयां
हम जिऐंगे या मरेंगे ...



कदम कदम बढाये जा

रचनाकार: राम सिंह ठाकुर


कदम कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा
ये जिन्दगी है क़ौम की, तू क़ौम पे लुटाये जा

शेर-ए-हिन्द आगे बढ़, मरने से फिर कभी ना डर
उड़ाके दुश्मनों का सर, जोशे-वतन बढ़ाये जा
कदम कदम बढ़ाये जा ...

हिम्मत तेरी बढ़ती रहे, खुदा तेरी सुनता रहे
जो सामने तेरे खड़े, तू ख़ाक मे मिलाये जा
कदम कदम बढ़ाये जा ...

चलो दिल्ली पुकार के, क़ौमी निशां सम्भाल के
लाल किले पे गाड़ के, लहराये जा लहराये जा
कदम कदम बढ़ाये जा...


उपकार / मेरे देश की धरती

रचनाकार: इंदीवर


मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती

बैलों के गले में जब घुँघरू जीवन का राग सुनाते हैं
ग़म कोस दूर हो जाता है खुशियों के कंवल मुस्काते हैं
सुन के रहट की आवाज़ें यूँ लगे कहीं शहनाई बजे
आते ही मस्त बहारों के दुल्हन की तरह हर खेत सजे

मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती

जब चलते हैं इस धरती पे हल ममता अँगड़ाइयाँ लेती है
क्यों ना पूजें इस माटी को जो जीवन का सुख देती है
इस धरती पे जिसने जन्म लिया उसने ही पाया प्यार तेरा
यहाँ अपना पराया कोई नही हैं सब पे है माँ उपकार तेरा

मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती

ये बाग़ हैं गौतम नानक का खिलते हैं अमन के फूल यहाँ
गांधी, सुभाष, टैगोर, तिलक ऐसे हैं चमन के फूल यहाँ
रंग हरा हरिसिंह नलवे से रंग लाल है लाल बहादुर से
रंग बना बसंती भगतसिंह से रंग अमन का वीर जवाहर से

मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती


Tuesday, August 9, 2011

नाकाबाती छीं / बालकृष्ण गर्ग

सर्दी में थर-थर,
गर्मी में लू-लू ।

तुम करते हा-हा,
हम करते हू-हू ।

मीठा-मीठा गप,
कड़वा-कड़वा थू ।

नाकाबाती छीं,
कानाबाती कू ।

ढ़ोल / शिवराज भारतीय

ढम-ढमा-ढम बाजै ढोल
नाचै सगळा टाबर टोल
बबलू गबलू गोलू नाचै
पिंकी धापू गीत सुणावै
टाबर सगळा ताळी पीटै

बोल रामूड़ा थूं भी बोल
ढम-ढमा-ढम बाजै ढोल
नाचै सगळा टाबर टोल
तीज त्युंहारां मिंदर मेड़ी
ब्याव बनौरै बाजै ढोल।

मेळां-ठेळां री रंगत नै
बाज-बाज बधावै ढोल
ढम-ढमा-ढम बाजै ढोल
नाचै सगळा टाबर टोल


गैस सिलेण्डर / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

गैस सिलेण्डर कितना प्यारा ।
मम्मी की आँखों का तारा ।।

रेगूलेटर अच्छा लाना ।
सही ढंग से इसे लगाना ।।

गैस सिलेण्डर है वरदान ।
यह रसोई-घर की है शान ।।

दूघ पकाओ, चाय बनाओ ।
मनचाहे पकवान बनाओ ।।

बिजली अगर नही है घर में ।
यह प्रकाश देता पल भर में ।।

बाथरूम में इसे लगाओ ।
गर्म-गर्म पानी से नहाओ ।।

बीत गया है वक़्त पुराना ।
अब आया है नया ज़माना ।।

जंगल से लकड़ी मत लाना ।
बड़ा सहज है गैस जलाना ।।

किन्तु सुरक्षा को अपनाना ।
इसे कार में नही लगाना ।


ऊंदर थाणेदार

लाल टोपी, काळो चश्मो,
पै‘र पजामो झालरदार
हाथ में डंडो, मुंह में सीटी,
ऊंदर बणग्यो थाणेदार।

मूंछ पलारी, टाई सुंवारी
बांकी-बांकी चाल्यो चाल।
गुवाड़ी में मारी दाकळ,
टाबर होग्या आकळ-बाकळ,
ऊंदरड़ी फुलाया गाल।
बिल्ली नै सुधारूंलो,
गुंडा नै सुंवारूंलो,
पूछूंलो म्है कई सुवाल
बिल रै सामी बिल्ली आई,
ऊंदरियै री शामत आई,
छयांया-म्यांयां सारा सुवाल।


Thursday, June 16, 2011

ना तीर न तलवार से मरती है

ना तीर न तलवार से मरती है सचाई
जितना दबाओ उतना उभरती है सचाई

ऊँची उड़ान भर भी ले कुछ देर को फ़रेब
आख़िर में उसके पंख कतरती है सचाई

बनता है लोह जिस तरह फ़ौलाद उस तरह
शोलों के बीच में से गुज़रती है सचाई

सर पर उसे बैठाते हैं जन्नत के फ़रिश्ते
ऊपर से जिसके दिल में उतरती है सचाई

जो धूल में मिल जाय, वज़ाहिर, तो इक रोज़
बाग़े-बहार बन के सँवरती है सचाई

रावण की बुद्धि, बल से न जो काम हो सके
वो राम की मुस्कान से करती है सचाई

Wednesday, June 15, 2011

अम्मा की चिट्ठी

गाँवों की पगडण्डी जैसे
टेढ़े अक्षर डोल रहे हैं
अम्मा की ही है यह चिट्ठी
एक-एक कर बोल रहे हैं

अड़तालीस घंटे से छोटी
अब तो कोई रात नहीं है
पर आगे लिखती है अम्मा
घबराने की बात नहीं है

दीया बत्ती माचिस सब है
बस थोड़ा सा तेल नहीं है
मुखिया जी कहते इस जुग में
दिया जलाना खेल नहीं है

गाँव देश का हाल लिखूँ क्या
ऐसा तो कुछ खास नहीं है
चारों ओर खिली है सरसों
पर जाने क्यों वास नहीं है

केवल धड़कन ही गायब है
बाकी सारा गाँव वही है
नोन तेल सब कुछ महंगा है
इन्सानों का भाव वही है

रिश्तों की गर्माहट गायब
जलता हुआ अलाव वही है
शीतलता ही नहीं मिलेगी
आम नीम की छाँव वही है

टूट गया पुल गंगा जी का
लेकिन अभी बहाव वही है
मल्लाहा तो बदल गया पर
छेदों वाली नाव वही है

बेटा सुना शहर में तेरे
मार-काट का दौर चल रहा
कैसे लिखूँ यहाँ आ जाओ
उसी आग में गाँव जल रहा

कर्फ्यू यहाँ नहीं लगता
पर कर्फ्यू जैसा लग जाता है
रामू का वह जिगरी जुम्मन
मिलने से अब कतराता है

चौराहों पर वहाँ, यहाँ
रिश्तों पर कर्फ्यू लगा हुआ है
इसकी नज़रों से बच जाओ
यही प्रार्थना, यही दुआ है

पूजा-पाठ बंद है सब कुछ
तेरी माला जपती हूँ
तेरे सारे पत्र पुराने
रामायण सा पढ़ती हूँ

तेरे पास चाहती आना
पर न छूटती है यह मिटटी
आगे कुछ भी लिखा न जाए
जल्दी से तुम देना चिट्ठी।