Thursday, August 11, 2011

दोस्ती / गुड़िया हमसे रूठी रहोगी

रचनाकार: मजरूह सुल्तानपुरी


गुड़िया, हमसे रूठी रहोगी
कब तक, न हँसोगी
देखो जी, किरन सी लहराई
आई रे आई रे हँसी आई
गुड़िया ...

झुकी-झुकी पलकों में आ के
देखो गुपचुप आँखों से झाँके
तुम्हारी हँसी
फिर भी, अँखियाँ बन्द करोगी
गुड़िया ...

अभी-अभी आँखों से छलके
कुछ-कुछ होंठों पे झलके
तुम्हारी हँसी
फिर भी, मुख पे हाथ धरोगी
गुड़िया ...

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