Tuesday, August 9, 2011

नाकाबाती छीं / बालकृष्ण गर्ग

सर्दी में थर-थर,
गर्मी में लू-लू ।

तुम करते हा-हा,
हम करते हू-हू ।

मीठा-मीठा गप,
कड़वा-कड़वा थू ।

नाकाबाती छीं,
कानाबाती कू ।

No comments:

Post a Comment